गोवा में किंगमेकर तो है, लेकिन किंग का अता-पता नहीं...

Goa Assembly Election 2022: गोवा में 14 फरवरी को एक चरण में सभी 40 सीटों पर मतदान होंगे और नजीते 10 मार्च को घोषित होंगे। गोवा की राजनीति अन्य चुनावी राज्यों के मुकाबले बहुत ही दिलचस्प है। कांग्रेस, भाजपा, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, महाराष्ट्र गोमन पार्टी, गोवा फॉरवर्ड पार्टी, गोवा विकास पार्टी समेत अन्य क्षेत्रीय दलों के बीच जबरदस्त रस्साकशी का खेल जारी है।

गोवा में किंगमेकर कि नहीं, किंग की है कमी

गोवा में किंगमेकर तो बहुत है लेकिन किंग की कमी है। इसकी एक वजह गोवा का भारत का सबसे छोटा राज्य होना है। गोवा में कुल 40 विधानसभा सीट है। औसतन एक विधानसभा सीट पर 25 से 30 हजार मतदाता है। छोटी विधानसभा होने के कारण नेता नगरी की जनता तक सीधी पहुँच है। छोटे राज्यों की यह खूबी भी है कि नेता प्रत्येक मतदाता को जानता-पहचानता है। इस कारण गोवा की राजनीति में पार्टी से ज्यादा चेहरों का वर्चस्व है।

गोवा में किंगमेकर कौन होगा यह बताना तो बहुत सरल है लेकिन किंग कौन होगा इसका अंदाजा लगाना अर्जुन की तरह नीचे पानी में देख ऊपर घूमती हुई मछली की आँख भेदने जैसा है।

मनोहर पर्रिकर के बिना क्या पार लगेगी भाजपा की नैया

सत्ता पर काबिज भाजपा मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद असमंजस में है। भाजपा दो खेमों में बटी दिखाई दे रही है। उत्पल पर्रिकर मनोहर पर्रिकर की विरासत को संभाल रहे हैं और पुरानी भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं। एक तरह से पार्टी आलाकमान को संकेत है कि अभी हम भी है। जबकि मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत नई भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं। गोवा में पार्टी से ज्यादा चेहरा महत्वपूर्ण है। ऐसे में भाजपा को नहीं पता कि चुनाव में लोग भाजपा को वोट देते थे या मनोहर पर्रिकर को। आगामी विधानसभा चुनाव में ये वोट भाजपा को मिलेंगे या नहीं, भाजपा को यह भी नहीं पता। दूसरी तरफ भाजपा का कैडर वोट कितना मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के साथ है। इसका भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। हिंदुत्वा की राजनीति गोवा में लगभग बेसर है। गोवा की लगभग 25%आबादी ईसाई है। ईसाई समाज को साथ लिए बिना गोवा में सत्ता की सीढ़ी चढ़ाना बहुत मुश्किल है।

टीएमसी बनी कांग्रेस की संकटमोचन

आरंभ में कांग्रेस में भी कई गुट थे। बाकी राज्यों की तरह गोवा में भी कांग्रेस आपसी कलह से जूझ रही थी। लेकिन चुनाव से ठीक पहले टीएमसी ने जोर-शोर से गोवा में कदम रखा और कांग्रेस को तोड़ना शुरू किया। टीएमसी कांग्रेस को तोड़ रही थी या कांग्रेस में उलझे हुए गाठों को सुलझा रही थी। यह कहना मुश्किल है। टीएमसी ने एक एक करके कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया। अब कांग्रेस दिगंबर कामत के चेहरे के साथ मैदान में है। कांग्रेस में सीएम का अब और कोई नेता दावेदार ही नहीं बचा है। भाजपा की तरह कांग्रेस भी असमंजस में है। पार्टी छोड़कर गए नेता अपने साथ कितना वोट ले गए। कांग्रेस इसका अनुमान लगाने में लगी है। गोवा की जनता भी दल बदल से त्रस्त है। ऐसे में कांग्रेस के पास अवसर है, वह लगभग 25 से अधिक सीटों पर नए उम्मीदवार उतार सकती है। गोवा की जनता को भी अब साफ पता है कांग्रेस को वोट देने का मतलब दिगम्बर कामत को मुख्यमंत्री चुनना है। मनोहर पर्रिकर से पहले दिगम्बर कामत मुख्यमंत्री के रूप में गोवा की सेवा कर चुके है।

आप ने खेला जाती कार्ड, क्या बनेगी सत्ता की चाबी

आम आदमी पार्टी गोवा में नए चेहरे देने के नाम पर चुनाव जीतने का सपना देख रही थी। लेकिन नए चेहरे देने की बात कर कांग्रेस ने आप के इस प्लान पर पानी फेर दिया है। अब आप ने जाती वाला दांव खेला है। गोवा के सबसे बड़े भंडारी समुदाय से आने वाले अमित पालेकर को अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री चेहरा बनाया है। वहीं कैथोलिक समुदाय से उपमुख्यमंत्री देने की बात कही है। गोवा में भंडारी समुदाय ओबीसी में आता है। इनकी आबादी 30 से 32% है। इस समुदाय से गोवा में अब तक केवल एक ही मुख्यमंत्री रहा हैं। करोना काल में आप के नेता जमीन पर काम करते दिखे हैं। ऐसे में आप 4 से 5 सीट भी जीत लेती है, तो वह किंगमेकर की भूमिका में आ जाएगी।

नया डॉन का वादा कर पुराने डॉन देगी टीएमसी

टीएमसी का गोवा में कोई ठोस आधार तो नहीं दिखता है। टीएमसी ने गोवा में नारा दिया है "गोयांची नवीन सकल" इसके साथ ही गोवा में नया डॉन लाने की बात कही है। डॉन से मतलब कदावर नेता से है, लेकिन टीएमसी ने गोवा के सभी पुराने डॉन को अपने खेमे में शामिल कर लिया है। गोवा के क्षेत्रीय दलों में से जिसने भी 4 से 5 सीट जीत ली। वह किंगमेकर बन जायेगा लेकिन किंग कौन बनेगा यह कहना बहुत मुश्किल है।

राजनीतिक अस्थिरता गोवा की राजनीति का पर्याय है। 1987 में राज्य का दर्जा मिलने के बाद से अपने 34 वर्षों के सफर में गोवा ने 20 मुख्यमंत्री देखें है। इनमें से कई तो एक बार से अधिक मुख्यमंत्री रहे है। इतना ही नहीं गोवा ने तीन बार राष्ट्रपति शासन का भी स्वाद चखा हैं। 1990 में मनोहर पर्रिकर के उदय से इसमें कमी आईं लेकिन 2017 में उनके निधन के बाद यही सिलसिला गोवा में एक बार फिर से देखने को मिला है। पार्टी से अधिक चेहरा महत्वपूर्ण होने के कारण गोवा में क्षेत्रीय दल से लेकर राष्ट्रीय दल तक कोई भी अपना नेटवर्क नहीं बना पाया है।

10 मार्च को वोटों की गिनती के साथ पता चलेगा की किंगमकारों के बीच से कौन गोवा का किंग बनकर सामने आता है।

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